Tuesday 7 October 2014

पेन्सिल की कहानी



पेन्सिल की कहानी

एक बालक अपनी दादी मां को एक पत्र लिखते हुए देख रहा था।

अचानक उसने अपनी दादी मां से पूंछा,
" दादी मां !" क्या आप मेरी शरारतों के बारे में लिख रही हैं ? आप मेरे बारे में लिख रही हैं, ना "

यह सुनकर उसकी दादी माँ रुकीं और बोलीं , " बेटा मैं लिख तो तुम्हारे बारे में ही रही हूँ, लेकिन जो शब्द मैं यहाँ लिख रही हूँ उनसे भी अधिक महत्व इस पेन्सिल का है जिसे मैं इस्तेमाल कर रही हूँ। मुझे पूरी आशा है कि जब तुम बड़े हो जाओगे तो ठीक इसी पेन्सिल की तरह होगे। "

यह सुनकर वह बालक थोड़ा चौंका और पेन्सिल की ओर ध्यान से देखने लगा, किन्तु उसे कोई विशेष बात 
नज़र नहीं आयी। वह बोला, " किन्तु मुझे तो यह पेन्सिल बाकी सभी पेन्सिलों की तरह ही दिखाई दे रही है।"

इस पर दादी माँ ने उत्तर दिया,
" बेटा ! यह इस पर निर्भर करता है कि तुम चीज़ों को किस नज़र से देखते हो। इसमें पांच ऐसे गुण हैं, जिन्हें 
यदि तुम अपना लो तो तुम सदा इस संसार में शांतिपूर्वक रह सकते हो। "

पहला गुण : तुम्हारे भीतर महान से महान उपलब्धियां प्राप्त करने की योग्यता है, किन्तु तुम्हें यह कभी 
भूलना नहीं चाहिए कि  तुम्हे एक ऐसे हाथ की आवश्यकता है जो निरन्तर तुम्हारा मार्गदर्शन करे। हमारे 
लिए वह हाथ ईश्वर का हाथ है जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करता रहता है। "

"दूसरा गुण : बेटा ! लिखते, लिखते, लिखते बीच में मुझे रुकना पड़ता है और फ़िर कटर से पेन्सिल की नोक 
बनानी पड़ती है। इससे पेन्सिल को थोड़ा कष्ट तो होता है, किन्तु बाद में यह काफ़ी तेज़ हो जाती है और अच्छी 
चलती है। इसलिए बेटा ! तुम्हें भी अपने दुखों, अपमान और हार को बर्दाश्त करना आना चाहिए, धैर्य से सहन 
करना आना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से तुम एक बेहतर मनुष्य बन जाओगे। " 

" तीसरा गुण : बेटा ! पेन्सिल हमेशा गलतियों को सुधारने के लिए रबर का प्रयोग करने की इजाज़त देती है।
इसका यह अर्थ है कि यदि हमसे कोई गलती हो गयी तो उसे सुधारना कोई गलत बात नहीं है। बल्कि ऐसा 
करने से हमें न्यायपूर्वक अपने लक्ष्यों की ओर निर्बाध रूप से बढ़ने में मदद मिलती है। "

" चौथा गुण : बेटा ! एक पेन्सिल की कार्य प्रणाली में मुख्य भूमिका इसकी बाहरी लकड़ी की नहीं अपितु 
इसके भीतर के 'ग्रेफाईट' की होती है। ग्रेफाईट या लेड की गुणवत्ता जितनी अच्छी होगी,लेख उतना ही सुन्दर होगा। इसलिए बेटा ! तुम्हारे भीतर क्या हो रहा है, कैसे विचार चल रहे हैं, इसके प्रति सदा सजग रहो। "

"अंतिम गुण : बेटा ! पेन्सिल सदा अपना निशान छोड़ देती है। ठीक इसी प्रकार तुम कुछ भी करते हो  तो तुम भी अपना निशान छोड़ देते हो।
अतः सदा ऐसे कर्म करो जिन पर तुम्हें लज्जित न होना पड़े अपितु तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का सिर
गर्व से उठा रहे। अतः अपने प्रत्येक कर्म के प्रति सजग रहो। "

Wednesday 10 September 2014

Read this small story; Hope that makes a BIG change in YOU



Read this small story; Hope that makes a BIG change in YOU



The Professor began his class by holding up a glass with some water in it. He held it up for all to see & asked the students “How much do you think this glass weighs?”
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’50gms!’….. ’100gms!’ …..’125 gms’ …the students answered.
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“I really don’t know unless I weigh it,” said the professor, “but, my question is:
What would happen if I held it up like this for a few minutes?”…. .
‘Nothing’ …..the students said.
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‘Ok what would happen if I held it up like this for an hour?’ the professor asked.
‘Your arm would begin to ache’ said one of the student
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“You’re right, now what would happen if I held it for a day?”
“Your arm could go numb; you might have severe muscle stress & paralysis & have to go to hospital for sure!”
….. Ventured another student & all the students laughed
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“Very good.
But during all this, did the weight of the glass change?” Asked the professor.
‘No’…. Was the answer.
“Then what caused the arm ache & the muscle stress?”
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The students were puzzled.
“What should I do now to come out of pain?” asked professor again.
“Put the glass down!” said one of the students
.
“Exactly!” said the professor.
Life’s problems are something like this.
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Hold it for a few minutes in your head & they seem OK.
Think of them for a long time & they begin to ache.
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Hold it even longer & they begin to paralyze you. You will not be able to do anything.
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It’s important to think of the challenges or problems in your life, But EVEN MORE IMPORTANT is to ‘PUT THEM DOWN’ at the end of every day before you go to sleep…
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That way, you are not stressed, you wake up every day fresh &strong & can handle any issue, any challenge that comes your way!
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Moral
So, when you start your day today, Remember friend to ‘PUT THE GLASS DOWN TODAY! ‘

Thursday 28 August 2014

मजदूर के जूते

मजदूर के जूते

एक बार एक शिक्षक संपन्न परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक युवा शिष्य के साथ कहीं टहलने निकले . उन्होंने देखा की रास्ते में पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं , जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे जो अब अपना काम ख़त्म कर घर वापस जाने की तयारी कर रहा था .

शिष्य को मजाक सूझा उसने शिक्षक से कहा , “ गुरु जी क्यों न हम ये जूते कहीं छिपा कर झाड़ियों के पीछे छिप जाएं ; जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा !!”

शिक्षक गंभीरता से बोले , “ किसी गरीब के साथ इस तरह का भद्दा मजाक करना ठीक नहीं है . क्यों ना हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छिप कर देखें की इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है !!”

शिष्य ने ऐसा ही किया और दोनों पास की झाड़ियों में छुप गए .

मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया . उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ , उसने जल्दी  से जूते हाथ में लिए और देखा की अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे , उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें पलट -पलट कर देखने लगा . फिर उसने इधर -उधर देखने लगा , दूर -दूर तक कोई नज़र नहीं आया तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए . अब उसने दूसरा जूता उठाया , उसमे भी सिक्के पड़े थे …मजदूर भावविभोर हो गया , उसकी आँखों में आंसू आ गए , उसने हाथ जोड़ ऊपर देखते हुए कहा – “हे भगवान् , समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए उस अनजान सहायक का लाख -लाख धन्यवाद , उसकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दावा और भूखें बच्चों को रोटी मिल सकेगी .”

मजदूर की बातें सुन शिष्य की आँखें भर आयीं . शिक्षक ने शिष्य से कहा – “ क्या तुम्हारी मजाक वाली बात की अपेक्षा जूते में सिक्का डालने से तुम्हे कम ख़ुशी मिली ?”

शिष्य बोला , “ आपने आज मुझे जो पाठ पढाया है , उसे मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा . आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया हूँ जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था कि लेने  की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है . देने का आनंद असीम है . देना देवत्त है .”

 

Tuesday 19 August 2014

सच्ची विजय

सच्ची विजय

राजा देवकीर्ती एक महान योद्धा थे, अपने गुरु के guidance में वे युद्धकला में अत्यंत निपुण हो गये थे, राजा देवकीर्ती ने अनेक महारथियों को पराजित किया था जिससे उनके अंदर अभिमान गया, king Devkirti को दूसरों को हराने में, उनको नीचा दिखाने में मजा आने लगा,
दूसरों को हराने उनको नीचा दिखाने का अभिमान सबसे बुरा होता है, इसमें व्यक्ति सही गलत का भेद करना भूल जाता है,
इसी अभिमान में एक दिन , king अपने गुरु से मिलने गये और बड़े दंभपूर्ण स्वर में बोले-“ गुरुदेव! मेरा स्वागत करें, आज मैं सब योद्धाओं को हरा कर, आप का नाम ऊँचा कर के लौटा हूँ,”
राजा के इन दंभपूर्ण शब्दों को सुन कर, उनके गुरु हँसे  और बोले-“ देवकिर्ती तूने सब को पराजित कर दिया, पर क्या स्वयं को पराजित कर पाया ?”
गुरु कि यह बात सुन कर राजा देवकिर्ती को बड़ा surprise हुआ, और वो बोले-“ गुरुदेव! क्या अपने को भी कोई पराजित कर सकता है ?”
इस पे गुरुदेव बोले –“ बेटा! असली युद्ध तो स्वयं के विरुद्ध ही लड़ा जाता है, जो अपने अहंकार को पराजित कर लेता है, उसका ही पराक्रम सबसे बड़ा होता है, स्वयं कि दुस्प्रवृत्तियों को नियंत्रित कर लेना ही साधना है और अपने व्यक्तित्व का परिष्कार कर लेना ही उस साधना कि सिद्धि है,” 
गुरु के ये वचन सुन राजा को अपने झूठे अहंकार पे पश्चाताप हुआ और उसने अपने अहंकार को दूर करने के लिए अपने विरुद्ध युद्ध प्रारंभ कर दिया/
राजा देवकिर्ती कि तरह हम सभी भी दुनिया से तो जीतने का प्रयास करते है, पर स्वयं के  

अंदर के दुश्मनों (बुराइयों) को भूल जाते हैं जो बाद में हमें दुनिया के आगे हमेशा के लिए हरा देते हैं इसलिए पहले स्वयं से जीतो क्योंकि  तब मिली ये जीत आपकी true victory होगी जो हमेशा के लिए तुम्हारे साथ रहेगी/